Kabir Ke Dohe In Hindi PDF: कबीर दास जी के प्रसिद्द दोहे हिंदी अर्थ सहित

Kabir Ke Dohe In Hindi PDF 2024: कबीर जी के दोहे का स्मरण हर बच्चे को कराया जाता है। क्योंकि कबीर जी के दोहे आज भी लोग के जीवन को एक नई दिशा दिखाते हैं। इसलिए आज के अपने इस लेख के माध्यम से हम आपके साथ Kabir Ke Dohe In Hindi PDF को शेयर करने जा रहे हैं जो आपको काफी पसंद आ सकते हैं।

कबीर दास जी के प्रसिद्द दोहे

दोस्तों नीचे हमने कबीर दास जी के कुछ प्रसिद्ध दोहे और उनके अर्थ साझा किए हैं। जो आपको काफी पसंद आ सकते हैं।

WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now
Kabir Ke Dohe In Hindi PDF 2024

Table of Contents

Kabir Ke Dohe In Hindi PDF

बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।

जो मैंने बुराई देखने के लिए दुनिया में चला, मुझे किसी भी व्यक्ति में बुराई नहीं मिली।

राम नाम बिना जिनको ज्ञान, सुन्दर तेज बिन देह।

जिनके पास ज्ञान होने के बावजूद राम का नाम नहीं है, उनकी आत्मा अधूरी है, जैसे कि एक सुंदर तेज बिना देह की अधूरी है।

बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।

व्यक्ति जितना बड़ा होता है, उसका आचरण भी उतना ही उतार-चढ़ाव में होता है।

बूढ़ा होत दीन की अंधी, सब कहें राम राम।

जब व्यक्ति बूढ़ा हो जाता है और दृष्टि कमजोर हो जाती है, तब सभी लोग उससे राम राम कहते हैं।

बूझी बूझी रहो भाई, हृदय हैं सांई।

बुद्धिमान रहो भाई, क्योंकि दिल में भगवान बसे हुए हैं।

ज्ञानी होवे सूं समानी, रहत नहीं भिन्न।

जो व्यक्ति ज्ञानी होता है, वह सबको समान समझता है और अलग रहने की इच्छा नहीं करता।

साधु के संग सब किलकारी, ज्यों काँच काँसा।

साधु के संग रहने से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं, जैसे कि काँच और काँसा के मिलन से शब्दरूप में कई तरह के वस्त्र बन सकते हैं।

साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाई।

जैसे सूप बर्तन को शुद्ध करता है, वैसा साधु का समर्थन करना चाहिए।

गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काको लागूं पांय।

गुरु और गोविंद दोनों खड़े हैं, मैं किसकी सेवा करूं?

धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय।

धीरे-धीरे ही काम करो मन, सब कुछ धीरे-धीरे ही होता है।

हाड़ जलै ज्यूं लाकड़ी, केस जलै ज्यूं घास।
सब तन जलता देखि करि, भया कबीर उदास।

यह नश्वर मानव देह अंत समय में लकड़ी की तरह जलती है और केश घास की तरह जल उठते हैं। सम्पूर्ण शरीर को इस तरह जलता देख, इस अंत पर कबीर का मन उदासी से भर जाता है।

जो उग्या सो अन्तबै, फूल्या सो कुमलाहीं।
जो चिनिया सो ढही पड़े, जो आया सो जाहीं।

इस संसार का नियम यही है कि जो उदय हुआ है,वह अस्त होगा। जो विकसित हुआ है वह मुरझा जाएगा। जो चिना गया है वह गिर पड़ेगा और जो आया है वह जाएगा।

निंदक नियेरे राखिये, आँगन कुटी छावायें।
बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुहाए।

कबीर दास जी कहते हैं कि निंदकहमेशा दूसरों की बुराइयां करने वाले लोगों को हमेशा अपने पास रखना चाहिए, क्यूंकि ऐसे लोग अगर आपके पास रहेंगे तो आपकी बुराइयाँ आपको बताते रहेंगे और आप आसानी से अपनी गलतियां सुधार सकते हैं। इसीलिए कबीर जी ने कहा है कि निंदक लोग इंसान का स्वभाव शीतल बना देते हैं।

मलिन आवत देख के, कलियन कहे पुकार।
फूले फूले चुन लिए, कलि हमारी बार।

मालिन को आते देखकर बगीचे की कलियाँ आपस में बातें करती हैं कि आज मालिन ने फूलों को तोड़ लिया और कल हमारी बारी आ जाएगी। अर्थ सहित व्याख्याात आज आप जवान हैं कल आप भी बूढ़े हो जायेंगे और एक दिन मिटटी में मिल जाओगे। आज की कली, कल फूल बनेगी।

देह धरे का दंड है सब काहू को होय।
ज्ञानी भुगते ज्ञान से अज्ञानी भुगते रोय।

देह धारण करने का दंड – भोग या प्रारब्ध निश्चित है जो सब को भुगतना होता है। अंतर इतना ही है कि ज्ञानी या समझदार व्यक्ति इस भोग को या दुःख को समझदारी से भोगता है निभाता है संतुष्ट रहता है जबकि अज्ञानी रोते हुए – दुखी मन से सब कुछ झेलता है!

पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुवा, पंडित भया न कोइ।
एकै आखर प्रेम का, पढ़ै सो पंडित होइ॥

सारे संसारिक लोग पुस्तक पढ़ते-पढ़ते मर गए कोई भी पंडित (वास्तविक ज्ञान रखने वाला) नहीं हो सका। परंतु जो अपने प्रिय परमात्मा के नाम का एक ही अक्षर जपता है (या प्रेम का एक अक्षर पढ़ता है) वही सच्चा ज्ञानी होता है। वही परम तत्त्व का सच्चा पारखी होता है।

कबीर माया पापणीं, हरि सूँ करे हराम।
मुखि कड़ियाली कुमति की, कहण न देई राम॥

यह माया बड़ी पापिन है। यह प्राणियों को परमात्मा से विमुख कर देती है तथा
उनके मुख पर दुर्बुद्धि की कुंडी लगा देती है और राम-नाम का जप नहीं करने देती

जल में कुंभ कुंभ में जल है, बाहर भीतर पानी।
फूटा कुंभ जल जल ही समाया, यही तथ्य कथ्यो ज्ञानी।।

कबीर दास जी कहते हैं हम और भगवान एक हैं।संसार की अलग-अलग चीज़ों के अलग नाम और रूप हैं पर उन सबके मूल में एक ही भगवान हैं।

बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि।
हिये तराजू तौल के, तब मुख बाहर आनि॥

कबीर दास जी कहते हैं कि हमें सोच-समझकर बोलना चाहिए। हमारी बोली अनमोल है, इसलिए हमें हृदय की तराजू पर तौलकर बोलना चाहिए ताकि हम सही बात बोलें।

झूठे आचरण से, कभी नहीं मिलती प्रीत।
सच्चा मन रखो, तभी होगी सही प्रीत॥

कबीर दास जी कहते हैं कि हमें सच्चाई और सच्चे मन से लोगों से जुड़ना चाहिए। सच्चाई में ही भगवान हैं।

गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागूं पांय।
बलिहारी गुरु आपनो, गोविन्द दियो बताय॥

कबीर दास जी कहते हैं कि शिक्षक और भगवान अगर साथ में खड़े हैं तो सबसे पहल गुरु के चरण छूने चाहिए, क्योंकि ईश्वर तक पहुँचने का रास्ता भी गुरु ही दिखाते हैं।

संतोषी सुख की नेव है, लोलुपता दुख कारी।
साधो संतोष करो, नहीं तो होगा भारी॥

कबीर दास जी कहते हैं कि संतोष में ही सुख है और लालच दुख का कारण है। हमें संतोष करना चाहिए, नहीं तो मुश्किलें बढ़ सकती हैं।

ये भी पढ़ें –

निष्कर्ष

दोस्तों आज इस आर्टिकल के माध्यम से हमने आपके साथ Kabir Ke Dohe In Hindi PDF: कबीर दास जी के प्रसिद्द दोहे हिंदी अर्थ सहित को शेयर किया है। हम उम्मीद करते हैं दिए गए दोहे आपको पसंद आए होंगे।

WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now

Leave a Comment

मुकेश चंद्रा ने बीटेक आईटी से 2020 इंजीनिरिंग की है। मै पिछले 7 साल से ब्लॉगिंग के क्षेत्र में कंटेंट राइटर के रूप में कार्यरत हूँ, मुझे लेखन के क्षेत्र में 7 वर्षों का अनुभव है। अपने अनुभव के अनुसार में helpersir.com पर प्रकाशित किये जानें वाले सभी लेखों का निरिक्षण और विषयों का विश्लेषण करने का कार्य करता हूँ।